krishn prem mein bhige logoin ka swagat hai...........

Friday, January 8, 2010

मेरे,मन के गागर में,
       तुम सागर बन,उतर जाओ
और रीते घट में,बन सीप, ठहर जाओ ........

हर -पल आओ,मेरे अशांत मन के किनारे को ,
       बन के लहर,निर्मल कर जाओ ..........

मेरा मन बालू-कण की तरह बिखरा पड़ा है ,
  तुम बन के नीर, मिल कर, मुझे ठहरा जाओ.......    
       

2 comments:

  1. Loved it! God bless you... In Him...Shivani

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  2. मेरा मन बालू-कण की तरह बिखरा पड़ा है ,
    तुम बन के नीर, मिल कर, मुझे ठहरा

    प्रार्थना जी बहुत सुन्दर भाव -छोटी सी रचना में भरा -बधाई हो -आज कल कुछ नया ??

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