मेरे,मन के गागर में,
तुम सागर बन,उतर जाओ
और रीते घट में,बन सीप, ठहर जाओ ........
हर -पल आओ,मेरे अशांत मन के किनारे को ,
बन के लहर,निर्मल कर जाओ ..........
मेरा मन बालू-कण की तरह बिखरा पड़ा है ,
तुम बन के नीर, मिल कर, मुझे ठहरा जाओ.......
Loved it! God bless you... In Him...Shivani
ReplyDeleteमेरा मन बालू-कण की तरह बिखरा पड़ा है ,
ReplyDeleteतुम बन के नीर, मिल कर, मुझे ठहरा
प्रार्थना जी बहुत सुन्दर भाव -छोटी सी रचना में भरा -बधाई हो -आज कल कुछ नया ??