..हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
krishn prem mein bhige logoin ka swagat hai...........
Thursday, February 25, 2010
मैं तो खेलूँ कान्हा संग होरी रे, मोहे मीठी लागे थारी बरजोरी रे..... थारे प्रेम -रंग से भरी पिचकारी रे, म्हारे तन-मन को भीगा गई रे...... तोहरे रंग से रंगे मोरे घाघरा-चोली रे, अब न चढ़े कोई दूजो रंग रे......
प्रार्थना जी प्रेम में बरजोरी भी बड़ी सुन्दर होती है -सुन्दर भाव
ReplyDeleteमोहे मीठी लागे थारी बरजोरी रे...
शुक्ल भ्रमर ५