मेरे हाथों में है ही क्या .....
जिसे खो जाने का डर मुझे सताता है
मेरे पास अपना कुछ भी नहीं हैं
अगर है कुछ तो सिर्फ सोच ,
जिस पर सिर्फ मेरा अधिकार है |
तो क्यों न ,व्योम में ऊडूँ, बगीचों में खिलूँ ,
समन्दर की गहराई में उतरूँ,ध्यान की अग्नि में जलूँ,
धरती की तरह अपनी सोच को सशक्त बनाऊँ
और मन से नाता जोड़ कर उसे सदा शाँत रखूँ........
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