इसमें मेरी क्या खता
जो अपने अक्स में तुझे समाया -पाया .....
मैं तो खुद को ही ढूँढ रही
हर पल,..डगर ...नगर .....
मगर ...जैसे ही अपने को खोजना चाहा ....निहारना चाहा .....
पहचानना चाहा .....आखिर हूँ कौन मैं ...??
तुम स्वतः ही आ गए और....अब मेरी पहचान बन बैठे हो.....
........प्रार्थना .............
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