मुझे ,भी जी लेने दो थोडा सा......
इस नश्वर को प्रवृति ने हाँका अब तक ,
आज से निवृति को हाँकने दो
मुझे .....
परिचय होने दो स्वयं से ,
पा लेने दो जरा ,मुझे भी अपने आप को
मुझे .....
उफन न जाये कहीं ,मेरे हृदय कि व्येग -धारा ,
और शीतल न पड़ जाये मेरे मन का धरातल
मुझे ......
मेरी सोच को विस्तृत होने दो ,व्योम कि तरह ,
निर्भय बन जरा सा उड़ लूँ पंछी कि तरह
मुझे.....
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअति सुंदर भाव पूर्ण काव्य
ReplyDeleteपरिचय होने दो स्वयं से ,
पा लेने दो जरा ,मुझे भी अपने आप को
शुभ कामनाएं
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आपकी...
ReplyDeleteसस्नेह
गीता
sunder shabdon mein ki hai abhivyakti
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