अब मैं क्यों करूँ किसी से अरज,बन चुकी हूँ मैं चरणों कि रज ....
यह तो है प्रेम की अजब भाषा ,इसे कब,कौन,कहाँ है समझा .....
यह तो है "कृष्ण प्रेम की मंजुषा,न चाहूँ इससे बाहर निकलना..... यह मेरे हृदय की है मर्जी ,समझना चाहो तो तुम्हारी मर्जी ......
मैं पिघल कर बही जा रही ,न बदलेगी मेरी यह धारा .....
ठोकर ,मोड़ बाधा न रही ,क्यों कि मैं बनी प्रेम कि धरा ....
बहोत अच्छा
ReplyDeleteभारत प्रश्न मंच आपका स्वागत करता है. http://mishrasarovar.blogspot.com/
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteश्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया.........
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण!
Very nice poetry.I can read & write,understand Hindi. But not very fluent.Tnk for sharing..
ReplyDelete"मैं पिघल कर बही जा रही,
ReplyDeleteन बदलेगी मेरी यह धारा ....."
हार्दिक शुभकामनाएं
जय श्री कृष्ण! ...हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteप्रार्थना जी, आपकी कविता ने मन को छू लिया। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDelete--------
सावन आया, तरह-तरह के साँप ही नहीं पाँच फन वाला नाग भी लाया।
Jai Shri Radhe Krishna!!
ReplyDeleteBahut sundar blog or lakhen ke liye bahut bahut badhai!! kuch alag arth padne ko mile!!
Jai HO Mangalmay HO
ati sumdar...
ReplyDeletenice
ReplyDeleteमैं पिघल कर बही जा रही ,न बदलेगी मेरी यह धारा .....
ReplyDeleteठोकर ,मोड़ बाधा न रही ,क्यों कि मैं बनी प्रेम कि धरा ....
यही तो जिन्दगी है..पिघलना बहना और बहते जाना..शम्अ कई रंग में जलती है सहर होने तक..
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
are vaah.....aapki is bhaavbheeni prastuti ne is krishnbhakt ka dil chura liya sach....!!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeleteसादर
यह पोस्ट बहुत बेहतरीन है।
ReplyDeleteमैं पिघल कर बही जा रही ,न बदलेगी मेरी यह धारा .....
ReplyDeleteठोकर ,मोड़ बाधा न रही ,क्यों कि मैं बनी प्रेम कि धरा ....
सुन्दर उम्दा भाव ने छोटी छोटी रचनाओ में जान डाल दी है बधाई आइये हमारे ब्लॉग पर सुझाव व् समर्थन दें
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
IF IT IS ABOUT KRISHNA PLS WRITE AS
ReplyDelete"KANHA"
EDIT THE TITLE
BHRAMAR5
Thanks for editing the same --
ReplyDeleteone thing also please
NISHCHHAL ( SEE ON THE TOP)
yeh kanha prem ki nishhchal si dhara hai jo mujh mein prwahit hoti hi jaa rahi hai.
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