krishn prem mein bhige logoin ka swagat hai...........

Thursday, April 29, 2010

जब मैं, मैं थी  तब मैं ,क्या थी ?
जब से तुझे पाया , मैं -मैं न रही......

पाया है बहुत मन भरता नहीं
चक्षुओं से बह जाता,निश्चल स्नेह नीर तेरे लिए........
तुझ में समा के कुंड से क्षीर बनी 
इतनी विस्तृत हुई ,ब्रह्मांड मन में समा गया......
तेरा अस्तित्व ,हर पराग,हर कण में पाया 
इतना देखा कि,मैंने अपने अक्स में तुझे ही पाया......

No comments:

Post a Comment